Story of Princess Shreya in hindi | राजकुमारी श्रेया की कहानी
राजा रतन और रानी अपर्णा
एक समय की बात है, विद्यानगर के समृद्ध राज्य में, रतन नाम का एक बुद्धिमान और परोपकारी राजा और अपर्णा नाम की उसकी सुंदर रानी रहती थी। राजा और रानी मिलकर राज पाठ संभालते थे। राजा रतन राजकीय एवं न्याय के कार्य बखूबी निभाते थे और रानीजी राज्य मे सभी के बीच जाकर लोगों के कोए भी छोटी से छोटी समस्या को जानकार उनके आरोग्य, और खुशहाली के कार्य करती थी। रानी अपर्णा ने अपने साथ जोड़कर राज्य की महिलाओं को आत्मा निर्भर एवं सक्षम बनाया था। वे अपनी दयालुता के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे और उनकी प्रजा उनका आदर करती थी।
कई वर्षों से, राजा रतन और रानी अपर्णा ने अपनी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए एक संतान की प्राप्ती की आशा और प्रार्थना कर रहे थे। देवताओं के प्रति उनकी भक्ति अद्वितीय थी, कई वर्षों के इंतजार के बाद, अंततः उनकी प्रार्थनाओं का फल भगवान ने उन्हे दे ही दिया। उनके घर प्रातःकाल के सूर्य के समान दीप्तिमान एक छोटी कन्या का जन्म हुआ। उन्होंने उसका नाम राजकुमारी श्रेया रखा।
जैसे-जैसे राजकुमारी श्रेया बड़ी हुई, उसके साथ-साथ राज्य भी फलता-फूलता गया। लोग अपनी राजकुमारी की बुद्धि, सुंदरता और दयालुता के लिए उसकी प्रशंसा करते थे। उसकी बुद्धिमत्ता और कृपा की खबर पड़ोसी राज्यों तक पहुंच गई और वे भी उसके विचार और दयालु व्यवहार से प्रभावित हो गए।
राजकुमारी श्रेया का अपहरण
ऐसे ही एक दिन मनहूस दिन बनकर, विद्यानगर पर एक काली छाया बन कर छा गया। विक्राल नाम के एक दुष्ट जादूगर ने, जिसकी आंखें तूफानी रात की तरह काली थीं, उसने राज्य पर बुरा जादू कर दिया। अपनी नापाक शक्तियों से उसने राजकुमारी श्रेया का अपहरण कर लिया और हवा में गायब हो गया। जाते समय उसने राजकुमारी को अपनी जादू से खरगोश बना डाला।
जब राजा और रानी को पता चला कि उनकी प्यारी राजकुमारी गायब है, तो उनके दिल के लाखों टुकड़े हो गये। वे रोये, और उनकी निराशा की चीखें पूरे देश में गूँज उठीं। श्रेया को वापस लाने के लिए बेताब, राजा रतन ने घोषणा की कि जो कोई भी उनकी राजकुमारी को बचाएगा उसे उसका आधा राज्य दिया जाएगा और राजकुमारी श्रेया से शादी करायी जाएगी।
दिन रात में बदल गए, लेकिन किसी ने भी उस डरावने जादूगर का सामना करने की हिम्मत नहीं की। आशा कम हो रही थी। तभी एक साधारण गाँव का एक युवा और साहसी लड़का आगे आया। उनका नाम अभिमान था, जिसका अर्थ था “गर्व”, लेकिन वह अपनी विनम्रता और साहस के लिए जाना जाता था।
साहसी अभिमान
युवा अभिमान राजा और रानी के महल में पहोंचा तब राजा के सैनिकों ने उसे अंदर जाने से मना किया। जब अभिमान में कहा कि मैं राजकुमारी को वापस लेकर आऊंगा और उसके लिए मुझे राजाजी से मिलना जरूरी है, तो सभी द्वारपाल और सैनिकों ने उसके शरीर और कद को देखते हुए उसका खूब मजाक उड़ाया। यह शोर सुनकर प्रधानजी मुख्य द्वार पर आकर देखने लगे तो उन्हें अभिमान के बारे में पता चला। उन्होंने अभिमान को राजा और रानी के समक्ष प्रस्तुत किया।
अभिमान ने राजा और रानी के समक्ष बड़ी विनम्रता के साथ राजकुमारी श्रेया को वापस लाने की अपनी मनीषा प्रगट करी। निराश राजा के पास दूसरा कोई चारा नहीं था जो उन्हें राजकुमारी को वापस लाने के बारे में बता सके। राजा ने अभिमान को बड़े दुखी मन से सम्मति दे दी। और कहा कि खुद का ख्याल रखना और हो सके जितना राजकुमारी श्रेया को वापस सही सलामत लेकर आना।
अभिमान ने राजाजी और रानीजी के पैर छूकर आशीर्वाद लिये और उन्हें अश्वस्त किया की वह राजकुमारी श्रेया को सम्मान के साथ और सुरक्षा के साथ वापस लेकर ही आएगा अन्यथा वह जिंदा वापस नहीं लौटेगा।
अभिमान ने अपनी यात्रा शुरू करने से पहले देवताओं का आशीर्वाद मांगा। उनकी ईमानदारी से प्रभावित होकर दिव्य देवताओं ने उन्हें अपनी सुरक्षा प्रदान की। उनके आशीर्वाद से, अभिमान राजकुमारी श्रेया को खोजने के लिए निकल पड़ा, उसका हृदय दृढ़ संकल्प से भरा हुआ था।
उसकी यात्रा कठिन परीक्षणों और कष्टों से भरी थी। उसे खतरनाक पहाड़ों पर चढ़ना पड़ा, शक्तिशाली नदियों को पार करना पड़ा और क्रूर जानवरों का सामना करना पड़ा जो उसका रास्ता रोकते थे।
पर्वतीय राक्षसी की कथा:
जैसे ही अभिमान ने दुर्गम पहाड़ों की ओर यात्रा की, उसका रास्ता उसे एक दुर्जेय राक्षसी के पास ले गया। राक्षसी, वायुना नाम की एक स्वर्गीय अप्सरा, को उसके अहंकार के लिए देवताओं के राजा ने शाप दिया था। उसे वरदान दिया गया था कि यदि कोई उसे युद्ध में हरा देगा तो वह अपना असली रूप पुनः प्राप्त कर लेगी।
साहसी और तेज-तर्रार अभिमान ने अटूट निश्चय के साथ राक्षसी का सामना किया। उसने उसे मात देने के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया, जाल बिछाया और उसे बुद्धि परीक्षण के लिए चुनौती दी। जैसे ही वह अभिमान के चालाक जाल में फंसने वाली थी, उसे एहसास हुआ कि उसका अहंकार उसके पतन का कारण बना था। जिस क्षण उसने अपनी गलती स्वीकार की और विनम्रता दिखाई, उसका श्राप टूट गया।
वायुना अपने उद्धार के लिए आभारी होकर वापस अपने असली अप्सरा रूप में परिवर्तित हो गई। अभिमान की बुद्धि और दया के बदले में, उसने अभिमान को अदृश्य होने की शक्ति प्रदान की जो उसे आगे जाकर काम आनेवाली थी। वायुना ने, आगे किस दिशा में जाना चाहिए यह बताते हुए अभिमान को विजय प्राप्त होने का आशीर्वाद दिया।
महासागर संरक्षक की कथा:
अभिमान की यात्रा उसे विशाल महासागर तक ले गई, जहाँ वरुणा नाम की एक डरावनी हत्यारी व्हेल, जो कभी समुद्र की संरक्षक थी, छिपी रहती थी। वरुणा को अन्य समुद्री जीवों के प्रति क्रूरता के लिए शाप दिया गया था और उसे एक समान वरदान दिया गया था कि यदि कोई युवा उसे हरा सकता है, जो दिल का सच्चा हो, तो वह अपना असली रूप पुनः प्राप्त कर लेगी।
दृढ़ निश्चयी और बहादुर अभिमान ने उस भयानक प्राणी से मुकाबला किया। उनकी लड़ाई लहरों के बीच भड़क उठी, लेकिन अभिमान का साहस और दयालुता चमक उठी। उन्होंने न केवल अपनी बल्कि उन सभी समुद्री जीवों की रक्षा के लिए लड़ाई लड़ी जो वरुणा के अत्याचार से पीड़ित थे।
जैसे ही वरुणा हार गई और समुद्र की सतह पर पराजित हो गई, उसे अपनी क्रूरता की सीमा का एहसास हुआ। उसका दिल नरम हो गया और उसने माफ़ी मांगी। उसकी सच्ची क्षमा याचना से उसका श्राप टूट गया।
वरुणा अपने उद्धार के लिए आभारी होकर वापस अपने वास्तविक समुद्री संरक्षक रूप में परिवर्तित हो गई। अभिमान की दया के बदले में, उसने उसे एक उड़ने वाला कालीन उपहार में दिया जो उसे तेजी से आकाश में ले जाएगा।
सर्पराज की मुक्ति की कहानी:
अपनी खतरनाक यात्रा पर, अभिमान को सर्पराज नामक एक विशाल सांप का सामना करना पड़ा। सर्पराज, जो एक बार एक गौरवान्वित स्वर्गीय गंधर्व था, को उसके लालच के कारण देवताओं के राजा ने शाप दिया था। उसे उसके विषदंत तोड़नेवाले से मुक्ती मिलेगी और वह असली रूप में लौट जाएगा ऐसा वरदान दिया गया था।
हमेशा साहसी और दयालु अभिमान ने विशाल सांप का सामना किया। उड़ाने वाली कालीन की मदद से अभिमान ने सर्पराज का विषदंत तोड़ दिया। जैसे ही उसका दांत टूटा, अपने गलत काम की गहराई को महसूस करते हुए, सर्पराज को पश्चाताप हुआ और उसका श्राप हटा लिया गया।
सर्पराज वापस अपने सुंदर गंधर्व रूप में परिवर्तित हो गया, उसका हृदय अभिमान की करुणा के प्रति कृतज्ञता से भर गया। अपनी सहाय्यता के प्रतीक के रूप में, उसने अभिमान को सबसे गहरे जादू को काटने की शक्ति वाली एक स्वर्गीय तलवार उपहार में दी।
जादूगर की गुफा में प्रवेश
अप्सराओं द्वारा निर्देशित, अभिमान अपने रास्ते में आने वाली खतरनाक बाधाओं से विचलित हुए बिना आगे बढ़ता रहा। उसने घने जंगलों को पार किया, ऊंची चोटियों को पार किया और खतरनाक जल में यात्रा भी की। वह तब तक नहीं रुका जब तक कि वह दुष्ट जादूगर, जादूगर विक्राल की अंधेरी और भयावह गुफा तक नहीं पहुंचे।
जैसे ही अभिमान ने अपनी यात्रा जारी रखी, अब उसके पास तीन असाधारण वरदान थे – अदृश्यता, एक उड़ने वाला कालीन, और एक स्वर्गीय तलवार।
अभिमान ने अपनी अदृश्यता की शक्ति का उपयोग करते हुए जादूगर की गुफा में बिना पहचाने जाते प्रवेश कर लिया। उड़ते कालीन के साथ, उसने जादूगर की जादुई सुरक्षा को चकमा दे दिया और उसकी गुफा के केंद्र तक पहुंच गया।
जादूगर से आमना-सामना
जैसे ही जादूगर को मानव के शरीर की गंध आई तो वह चौकन्ना हो गया। अपनी जादुई ताकद से उसने अभिमान को पहचान लिया। स्वर्गीय अप्सरा और गंधर्व के इन उपहारों से उसे एक विशिष्ट लाभ मिला जब अंततः उसने दुष्ट जादूगर, विक्राल का सामना किया। दोनों मे काफी देर तक लड़ाई हो रही थी लेकिन स्वर्गीय तलवार होने के बावजूद जादूगर हार नहीं रहा था।
अभिमान और जादूगर विक्राल के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। दुष्ट जादूगर, अपनी अंधेरी शक्तियों से प्रेरित होकर, अपनी पूरी ताकत से लड़ा। हालाँकि, अभिमान की बहादुरी, दैवीय आशीर्वाद की ताकत किसी भी जादू से अधिक शक्तिशाली साबित हुई।
तभी, खरगोश बनाई गई राजकुमारी ने अभिमान को जादूगर के जीवित बचने का राज़ बताया। जादूगर ने उसकी अमरता सुनिश्चित करने के लिए उसके जीव को तोते के भीतर छिपा दिया था। हालाँकि, अभिमान साधन संपन्न था। दिव्य तलवार का उपयोग करके, उसने तोते का जैसे ही गला दबोचा तो जादूगर गिर गया और तोते की मृत्यु के साथ ही जादूगर विक्राल का भी तड़प-तड़प कर अंत हो गया।
अभिमान ने दिव्य तलवार से जादूगर विक्राल को परास्त कर देते ही, जादूगर का अंधकार का शासन भी समाप्त हो गया। अंततः बुराई पर अच्छाई की विजय हुई।
बंधकों की मुक्ती
जैसे ही जादूगर की जादू की शक्ति क्षीण हुई, राजकुमारी श्रेया को बंदी बनाने वाला जादू टूट गया। वह अपने असली रूप में लौट आई, अब वह खरगोश नहीं बल्कि एक तेजस्वी राजकुमारी थी। जादूगर विक्राल की मृत्यु के साथ, उसका जादुई साम्राज्य ढह गया, और जिन लोगों को उसने कैद किया था वे सभी अपने शापित रूपों से मुक्त हो गए, और एक बार फिर मानव बन गए।
अभिमान ने जादूगर विक्राल को परास्त किया और राजकुमारी श्रेया को उसके चंगुल से छुड़ाया। जादूगर की जादू से मुक्त हुए सभी बंधक महिला, पुरुषों तथा बच्चों ने अभिमान को सिर पर उठाया और सभी लोग खुशी से झूम उठे। रात भर जश्न मनाया और सुबह सभी अपने-अपने घरों की ओर निकल गए।
घर वापसी
इधर अभिमान और राजकुमारी श्रेया उड़नेवाली कालीन पर बैथ कर विद्यानगर राज्य को ओर निकाल गए। जैसे ही नगर वासियों को उड़नेवाली कालीन पर बैठे हुए दोनों दिखे तो सभी नागरिक खुशी से झुमने लगे। राजकुमारी को देखकर राजा रतन और रानी अपर्णा अपने खुशी के आंसू रोक नहीं पाये। इतने दिनों के बाद लौट आई अपनी सुपुत्री को देख दोनों बेहद खुश थे, उन्होंने अभिमान का धन्यवाद किया।
राजा रतन ने अपने पूरे राज्य में मिठाई बाटने के आदेश जारी किये। अपने वचन के अनुसार, राजा रतन ने अभिमान को अपना आधा राज्य देने और राजकुमारी श्रेया के साथ उसका विवाह करने का ऐलान कर दिया।
राजा रतन की वचन पूर्ती
एक शुभ मुहूरत देखा कर दोनों की शादी का दिन तय किया गया। राज्य के सारे पुरोहित, मंत्रीगण, पड़ोसी राज्यों के राजा-महाराजाओं को मिठाई और उपहारों के साथ आमंत्रण पत्र भेजे गये। पूरे राज्य ने बहादुर नायक और सुंदर राजकुमारी के मिलन का जश्न मनाया जा रहा था और उनका प्यार सूरज की तरह चमक उठा था।
पूरे राज्य को घरों में चूल्हा ना जलाने की बिनती कर राजा रतन ने राज्य के सभी नागरिकों को अपने महल में खान-पान के लिए शामिल होने का निमंत्रण दिया। पूरे नगर में हर मार्ग पर रंगोली बनाकर, पताका लहराकर, दीपक जला कर खुशियां मनाई जा रही थी। दोनों की शादी का उत्सव सात दिन तक चलत रहा।
जैसे ही अभिमान ने और राजकुमारी श्रेया ने एक दूसरे को जयमाला पहनाई और जब अभिमान ने राजकुमारी को अपनी बाहों में लिया, विद्यानगर का राज्य खुशी से झूम उठा।
विद्यानगर राज्य ने अभिमान की वीरता का जश्न मनाया और उसके प्रति लोगों के प्रेम की कोई सीमा नहीं रही। अभिमान और राजकुमारी श्रेया की शादी भव्य उत्सवों के बीच हुई और उनकी प्रेम कहानी राज्य में एक चर्चित किंवदंती बन गई, जो साहस, प्रेम और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। अभिमान ने अपने साहस और करुणा से न केवल राजकुमारी को बचाया था बल्कि पूरे क्षेत्र को एक दुष्ट जादूगर की क्रूरता से मुक्त कराया था और सभी के लिए खुशी और शांति सुनिश्चित की थी।
विद्यानगर का राज्य समृद्ध होता रहा और वे सभी सदैव सुखी बन कर रहने लगे।
यह कहानी आप को कैसी लगी हमे जरुर कमेंट में बताइए।
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