गणेश चतुर्थी पूजा विधी, स्थापना मुहूर्त, साहित्य, उत्तर पूजा हिन्दी में | How to Perform Ganesh Chaturthi Puja in easiest way In Hindi 2023

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श्री गणेश चतुर्थी पूजा विधी Ganesh Chaturthi Puja Vidhi

इस पोस्ट में हम गणेश चतुर्थी के दिन गणेश चतुर्थी पूजा या विधिवत पूजन (Ganesh Chaturthi Puja) मुहूरत कब है, गणेश पूजा सामग्री, तथा गणेश पूजन कैसे करे यह जानेंगे।

चतुर्थी के पहले ही घर से सारा कबाड़ या रद्दी हटा दें। घर को अच्छे से सजाएं। काफी घरों को इस अवसर पर कलर करते है, या गणेश स्थापना के कमरे को कलर किया जाता है। मराठी घरों में अलग – अलग थीम से गणेश स्थापना की जगह पर डेकोरेशन एवं लाइटिंग करते है।

चतुर्थी के दिन घर के बाहर या आंगन में रंगोली बनाएं। घर का माहौल खुशनुमा और प्रसन्न रखें।

गणेश चतुर्थी पूजा मुहूरत – Ganesh Chaturthi Puja Time

इस साल 2023 में गणेश चतुर्थी 19 सितंबर के दिन है। इस दिन गणपती का विधिवत पूजन (Ganesh Puja) दिनभर कर सकते है। This year in 2023, Ganesh Chaturthi is on 19 September. On this day, you can worship Ganapati (Ganesh Puja).

इस साल का गणेश स्थापना मुहूरत 11:00 a.m to 1:43 p.m के बीच रहेगा। 1:45 पं के बाद पंचमी तिथि शुरू हो रही है। इस दिन सूर्योदय से लेकर 1:43 p.m बजे तक स्थापना कर सकते है।

सूरज ढलने के बाद गणेश पूजन करना नहीं चाहिए। Do not perform Ganesh Chaturthi Puja after sunset.

गणपती का विधिवत पूजन (Ganesh Puja) सामग्री, तथा गणेश पूजन कैसे करे यह नीचे दिया है।

पार्थिव गणेश पूजन सामग्री: Ganesh Chaturthi Puja Items

एक चौकी, बैठने के लिए पट या आसन, गणेशजी शाडू मिट्टी या मिट्टी की मूर्ति, कलावा, सिंदूर, तीन नारियल, अक्षत, लाल कपड़ा, सूत का कपड़ा, फूल, दूर्वा, गुलाब, कमल आदि। जनेऊ की जोड़ी (1), कपास का गेज वस्त्र, गणेशजी के कंधे पे रखने के लिए लाल वस्त्र।

लाल फूल, फूलों की माला, तुलसी के पत्ते, दस (10) सुपारी, 5 बादाम, 5 अखरोट, एक रुपये के पांच सिक्के, दस ताम्बूल के पत्ते, घी, तांबा/ पीतल या चाँदी के दो कलश, आम की दो टहनियाँ, कमल, केवड़े का पत्ता, दूर्वा, पंचामृत: (दूध, दही, घी, शहद, चीनी), गंगाजल, सूखा नारियल का टुकड़ा, गुड़, पांच फल, बत्ताशा, मिठाई, हल्दी, कुंकू, अबीर, गुलाल, बुक्का।

अगरबत्ती, अगरबत्ती स्टैंड, इत्र, दीपक, रुई, आरती की थाली। पूजा में शंख, घंटी, कर्पूरआरती और अगरबत्ती, कुशा, रक्तचंदन, चंदन, पूजा के लिए तांबे की पली, पंचपात्र और दो तांबे / पीतल के ताम्हन या थाली, पूजा के लिए पानी, हाथ पोंछने के लिए धोया हुआ कपड़ा। शुभ आभूषण – देवी रिद्धी-सिद्धी के लिए साड़ी-चोली या ब्लाउज पीस, काँच की चूड़ियां, काजल, मेहंदी, मंगलसूत्र, हलदी की गाँठ आदि। दो अखंड दीपक – एक देशी घी का और दूसरा तेल का।

तो, आइए जानें कि गणेश पूजन कैसे किया जाता है, जो कि सबसे सरल और सबसे व्यवस्थित अनुष्ठान है जो अखंड परिणाम देता है।

गणेशजी की मूर्ती कैसी हो? Ganesh Chaturthi Puja Idol

Ganesh Chaturthi Puja के लिए गणेशजी की मूर्ती 12 इंच से बड़ी न हो इसका विशेष खयाल रखे, तथा मूर्ती शाडू मिट्टी या मिट्टी की हो जो विसर्जन के बाद पानी में घुलकर प्रकृति का हिस्सा बन जाए। चाँदी, तांबा, पीतल, सोने की मूर्ती भी रख सकते है। प्लास्टर ऑफ पैरिस की मूर्ती ना पानी में घुलती है ना उसका सही विसर्जन होता है। इसलिए प्लास्टर की मूर्ती का प्रयोग न करें।

पूजा की पूर्व तैयारी और रचना:- Ganesh Chaturthi Puja Preperation

आपकी जानकारी के लिए बता दे कि पूजा शुरू करने से पहले पूजा विधि को एक बार जरूर पढ़ लें, ताकि आप भूली हुई चीजों को इकट्ठा कर सकें।

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गणेशजी की पूजा करने वाले व्यक्ति को स्नान कर स्वच्छ या धुले हुए धोती और अंगवस्त्र धारण करने चाहिए। गणेशजी की पूजा के समय माथे पर तिलक लगाकर पूजा शुरू करनी चाहिए। पूजा के लिए पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके किसी शुभ आसन पर बैठ जाएं। (दक्षिण की ओर मुंह करके कभी न बैठें।)

पूजा के लिए पानी से भरा कलश पास में रखना चाहिए।

पूजा की व्यवस्था ऊपर की आकृति के अनुसार की जानी चाहिए। चौकी को धोकर पूजा के स्थान पर रख दें। इसके चारों ओर रंगोली बनाएं। चौकी पर लाल वस्त्र बिछा दीजिए। उसपर थोड़े चावल डालकर उसपर कुमकुम से स्वस्तिक बनाए और उस के ऊपर गणेशजी की मूर्ती रखे। गणेशजी के सामने बाएं ओर थोडेसे चावल की ढेरी पर एक सुपारी या घर के मंदिर में रखी हुई धातू की छोटी मूर्ती रखें। (अभिषेक और प्रथम पूजा के लिए इस गणेशजी के प्रतिक स्वरूप पूजा करेंगे।)

कलश में पानी भरकर उसमें दो सुपारी, दूर्वा, तुलसी के पत्ते, दो लाल फूल, सोने-चांदी का सिक्का, एक रुपये का सिक्का डाल दें। कलश के चारों ओर हल्दी और कुमकुम की उंगलियों से सीधी लकीर खींचकर कलावा बांधें। आम की टहनियों को कलश पर रखकर उसपर नारियल रखे। इस कलश को गणेश जी के दाहिनी ओर रखें।

गणेशजी की मूर्ती के सामने अपनी दाहिनी ओर एक शंख रखें, जिसका मुख उत्तर की ओर हो। घंटी को मूर्ती के सामने बाईं ओर रखें।

घर के देवताओं, माता-पिता, बड़ों को प्रणाम करें और आशीर्वाद लें।
आसन बिछाकर चौकी के सामने गणेश मूर्ति के सामने बैठिए।
अब तेल का दीपक मूर्ती के दाएं और घी का दीपक मूर्ती के बाएं ओर रखकर उसे जलाएं।

(ध्यान दें: पूजा शुरू करने से पहले पूजा की सारी सामग्री पूजा स्थल पर ही रख लें ताकि उस समय कोई हड़बड़ी न हो।)

पूजा प्रारंभ: – Ganesh Chaturthi Puja Starts

माथे पर तिलक लगाएं।
तिलक धारण करने का मंत्र :-

केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरुषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं मे प्रसीदतु ।।
कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
ददातु चन्दनं नित्यं सततं धारयाम्यहम् ।।

(पूजा के लिए पानी से भरा कलश पास में रखना चाहिए। पंचपात्र में पानी लें। दाहिनी हथेली में पानी लें और इसे निम्नलिखित मंत्र से तीन बार पीएं।)

आचमन:

दाहिनी हथेली में जल लेकर पली से निम्नलिखित प्रत्येक नाम से तीन बार आचमन करें।
ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।

(चौथी बार पानी हाथ में लें और उसे थाली में छोड़ दें।)
ॐ गोविन्दाय नमः

हाथ जोड़कर निम्न मंत्र का जाप करें-
ॐ विष्णवे नमः। ॐ मधुसूदनाय नमः। ॐ त्रिविक्रमाय नमः। ॐ वामनाय नमः।
ॐ श्रीधाराय नमः। ॐ हृषीकेशाय नमः। ॐ पद्मनाभाय नमः। ॐ दामोदराय नमः।
ॐ संकर्षणाय नमः। ॐ वासुदेवाय नमः। ॐ प्रद्युम्नाय नमः। ॐ आनिरुद्धाय नमः।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः। ॐ अधोक्षजाय नमः। ॐ नारसिंहाय नमः। ॐ अच्युताय नमः।
ॐ जनार्दनाय नमः। ॐ उपेन्द्राय नमः। ॐ हरये नमः। ॐ श्रीकृष्णाय नमः।

पुनः आचमन:  इसके बाद एक बार फिर दाहिनी हथेली पर जल लेकर तीन बार आचमन करें
ॐ केशवाय नमः स्वाहा,
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा,
ॐ माधवाय नमः स्वाहा ।
(चौथी बार हाथ में पानी लेकर थाली में छोड़ दें।)
ॐ गोविन्दाय नमः
हाथ जोड़कर निम्न मंत्र बोलें –
ॐ विष्णवे नमः। ॐ मधुसूदनाय नमः। ॐ त्रिविक्रमाय नमः। ॐ वामनाय नमः।
ॐ श्रीधाराय नमः। ॐ हृषीकेशाय नमः। ॐ पद्मनाभाय नमः। ॐ दामोदराय नमः।
ॐ संकर्षणाय नमः। ॐ वासुदेवाय नमः। ॐ प्रद्युम्नाय नमः। ॐ आनिरुद्धाय नमः।
ॐ पुरुषोत्तमाय नमः। ॐ अधोक्षजाय नमः। ॐ नारसिंहाय नमः। ॐ अच्युताय नमः।
ॐ जनार्दनाय नमः। ॐ उपेन्द्राय नमः। ॐ हरये नमः। ॐ श्रीकृष्णाय नमः।

प्राणायाम:

निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए अनुलोम-विलोम प्राणायाम करें।
प्रणावस्य परब्रह्म ऋषिः। परमात्मा देवता। दैवी गायत्री छंद:। प्राणायामे विनियोगः। ॐ भू: ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ मह: ॐ जन: ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि। धियो योन: प्रचोदयात् । ॐ आपो ज्योती रसोऽमृतं ब्रह्मभूर्भुव स्वरोम ।

देवता वंदन आणि ध्यान:

दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत लेकर लक्ष्मी, गणेश आदि देवी-देवताओं की पूजा करने का संकल्प लें।

ॐ श्रीमन्महागणपतये नमः। श्री गुरुभ्यो नमः । श्री सरस्वत्यै नमः । श्री वेदाय नमः। वेदपुरुषाय नमः। इष्टदेवताभ्यो नमः। कुलदेवताभ्यो नमः। स्थान देवताभ्यो नमः। वास्तु देवताभ्यो नमः। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। शचीपुरन्दराभ्यां नमः। उमामहेश्वराभ्यां नमः। आदित्यादि नवग्रह देवताभ्यो नमः। मातापितृभ्यां नमः। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नमः। सर्वेभ्यो ब्रह्मणेभ्यो नमः।। अविघ्नमस्तु ।।

सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः। लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः।।
धूम्रकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। द्वादशैतानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।

विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।प्रसन्नवदनं ध्यायेत् सर्वविघ्नोपशान्तये ।।

सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तु ते।।
सर्वदा सर्वकार्येषु नास्ति तेषाममङ्गलम् | येषां हृदिस्थो भगवान् मङ्गलायतनो हरिः ||

तदेव लग्नं सुदिनं तदेव ताराबलं चंद्रबलं तदेव । विद्याबलं दैवबलं तदेव लक्ष्मीपते तेंघ्रियुगं स्मरामि।।
लाभस्तेषां जयस्तेषां कुतस्तेषां पराजयः । येषामिन्दीवरश्यामो हृदयस्थो जनार्दनः ।।

विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्मविष्णुमहेश्वरान्।सरस्वतीं प्रणम्यादौ सर्वकामार्थसिद्धये ।।अभीप्सितार्थसिध्यर्थ पूजितो यः सुरासुरैः । सर्व विघ्नछिदेतस्मै गणाधिपतये नमः।।
सर्वेष्वारबद्धकार्येशु त्रयस्त्रिभुवनेश्वरा:। देवाः दिशंतु नः सिद्धीं ब्रहमेशानजनार्दना:।।

संकल्प: 2023 के गणेशपूजा का संकल्प मंत्र

(नोट:- जहां नीचे *अमुक ऐसे लिखा हो, वहां दैनिक पंचाग को देखें और संवत्सर नाम, वार, दिवस नक्षत्र, योग, करण, चंद्रराशी, सूर्यराशी और गुरुराशी का उच्चारण करें। यदि जानकारी ना हो तो विष्णुयोग विष्णु कर्ण कहेंगे तो भी ठीक है।)

ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य
विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीयेपरार्धे
श्री श्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलि-युगे कलि प्रथम चरणे भरतवर्षे भरतखंडे जम्बूद्वीपे
आर्य्यावर्त देशांतर्गत (*अमुक) क्षैत्रे/नगरे शोभन नाम संवत्सरे, दक्षिणायने शरद ऋतौ
महामांगल्यप्रद मासोत्तमे भाद्रपद मासे शुक्ल पक्षे
चतुर्थी तिथौ मंगल वारे हस्तपरं स्वाती नक्षत्रे वैधृति योगे विष्टि करणे तुला राशि स्थिते चंद्रे कन्या राशि स्थिते सूर्य्ये

विष्णुराशि स्थिते देवगुरौ शैषेषु गृहेषु यथा यथं राशि स्थितेषु सत्सु एवंगृह गुण गण विशेषण विशिष्ठायां शुभ पुण्यतिथौ
(*अमुक) गौत्रः (*अमुक नाम शर्मा/ वर्मा/ गुप्तो) (यहां अपना नाम का उच्चार करें) दासोऽहम्‌ अहं, मम आत्मनः श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फलप्रापत्यर्थ अस्माकं सकुटुंबानाम् सपरिवाराणाम् क्षेम स्थैर्य आयुरारोग्यैश्वर्याधभिवृद्धयर्थम्‌ व्यापारे उत्तरोत्तरलाभार्थम्‌ सकलपीडापरिहारार्थ मनोप्सितसकलमनोरथसिद्ध्यर्थ च प्रतिवार्षिकविहितं श्रीसिद्धिविनायक पार्थिवमहागणपतीप्रीत्यर्थं यथाज्ञानेन यथा मिलितोपचार-द्रव्यै ध्यानावाहनादि षोडशोपचारै: पार्थिवमहागणपतीपूजनमहं करिष्ये।

दाहिने हाथ पर जल छोडकर फूल, अक्षत थाली मे छोड़ दें।

फिर से दाहिने हाथ में जल और अक्षत लेकर निम्नलिखित मंत्रों का जाप करें।

तत्रादौ निर्विघ्नता सिद्ध्यर्थ पार्थिवमहागणपतीस्मरणं तथा शरीरशुद्ध्यर्थ षडंगन्यासं कलश-शंख-घंटा-दीप पूजनम्‌ च करिष्ये ।

दाहिने हाथ पर जल छोडकर अक्षत थाली मे छोड़ दें

गणपति स्मरण:

निम्नलिखित मंत्र का जाप करते हुए निर्विघ्न पूजा के लिए प्रार्थना करें।
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम् ।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणाम् ब्रह्मणस्पत
आ नः शृण्वन्नूतिभिःसीदसादनम् ॥

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
कार्यं में सिद्धिमायातु प्रसन्ने त्वयि धातरि।
विघ्नानि नाशमायान्तु सर्वाणि सुरनायक।।
ॐ भूर्भुव: स्वः। श्री मन्महागणाधिपतये नमः प्रार्थनां समर्पयामि।

आसन शुद्धी:

अपने आसन पर निम्न मंत्र से जल छिड़कें-
पृथ्वीति मंत्रस्य मेरुपृष्ठऋषि: कुर्मो देवता सुतलं छंद: आसने विनियोग:।
ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवि त्वं विष्णुना धृता ।
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम्‌ ॥
इति आसनं विधाय।
ॐ अपसर्पन्तु ते भूता: ये भूता:भूमि संस्थिता:।
ये भूता: विघ्नकर्तारस्ते गच्छन्तु शिवाज्ञया॥
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचा: सर्वतो दिशम् ।
सर्वेषामविरोधेन पूजा कर्म समारभे॥

षडंगन्यास : –

इति भूतोत्सादनं कृत्वा षडंगन्यास:।
ॐ भूर्भुव: स्वः हृदयाय नम:।
(छाती को स्पर्श करें)
ॐ भूर्भुव: स्वः शिरसे स्वाहा।
(सिर को स्पर्श करें)
ॐ भूर्भुव: स्वः शिखायै वषट्।
(अपनी चोटी को स्पर्श करें)
ॐ भूर्भुव: स्वः कवचाय हुम्।
(हाथ की अंजली बनाकर छाती की ओर तीन बार घुमाएं)
ॐ भूर्भुव: स्वः नेत्रत्रयाय वषट्।
(आँखों और भौंहों के बीच में स्पर्श करें)
ॐ भूर्भुव: स्वः अस्त्राय फट्।
(ताली बजाये)
इति दिग्बंध:।

कलशस्थापना:

कलश पूजनम्:
पूजा करते समय जल का उपयोग करने के लिए अपने पास अलग से रखे हुये जल से भरे कलश की पूजा करें। इसमें गंध, अक्षत, फूल रखें और इसे अपनी दाहिनी हथेली से ढक दें और अपना बायां हाथ उस पर रखें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिता:।
मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता:।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोऽथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वणा:।
अंङेश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शांति पुष्टिकरी तथा।
आयान्तु देवपुजार्थं दुरितक्षयकारका:।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति ।
नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु॥
ॐ वरुणाय नमः। ॐ कलशदेवतायै नमः।
सर्वोपचारार्थे गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि।
नमस्करोमि ।

(इस कलश की गंध, अक्षत, फूल, हल्दी और कुंकू चढ़ाकर पूजा करें) (पूजा कलश का पानी पूजा के अंत तक इस्तेमाल किया जाना चाहिए)।
इस कलश से थोड़ा पानी चौकी पर गणेश जी के दाहिनी ओर रखे हुए कलश में डालें और . . .

चौकी पर रखे पूजा कलश को अपने हाथों से स्पर्श करें और निम्न मंत्र बोलें:
ॐ आकलशेषु धावति पवित्रे परिषिच्यते। उक्थैर्यज्ञेषु वर्धते।
देवासुरैर्मथ्यमानादुत्पन्नोऽसि महोदधे:।
कुंभ त्वयि सुरा: सर्वे तीर्थानि जलदा नदा:।
तिष्ठन्ति शांतिसुखदा: रुद्रादित्यादयोऽपि च।
अतोऽत्र धान्यराश्यौ त्वां पूजार्थं स्थापयाम्यहम्।
ॐ कलशदेवतायै नमः स्थापयामि । पूजयामि । नमस्करोमि।

(कलश की गंध, अक्षत, फूल, हल्दी और कुंकू चढ़ाकर पूजा करें। नमस्कार करें।)

शंख पूजनम्:
चौकी पर रखे शंख को पानी से धोकर, उसमे पानी भरकर, चौकी के शंख के मेरुपृष्ठ पर रखे. (शंख को पौछना नहीं चाहिये)
शंखादौ चंद्रदैवत्यं कुक्षौ वरुणदेवता । पृष्ठे प्रजापतिश्चैव अग्रे गंगासरस्वती ॥
त्वं पुरा सागरोत्पन्नौ विष्णुना विधृतः करे । अग्रतः सर्वदेवानां पांचजन्य नमोऽस्तुते ॥
ॐ पांचजन्याय विद्महे पावमानाय धीमहि। तन्नो शंख: प्रचोदयात्॥
शंखदेवयायै नमः । सर्वोपचारार्थे गंध-पुष्प-तुलसीपत्रं समर्पयामि ॥

(गंध, अक्षता, पुष्प, तुलसी पत्र अर्पण करें)

घंटा पूजनम्:
चौकी पर रखी घंटी को धोकर पोंछकर चौकी पर वापस रख दें।
आगमनार्थं तु देवानां गमनार्थं तु रक्षसाम्।
कुर्वे घंटारवं तत्र देवताव्हानलक्षणम्।। ॐ घंटायै नमः। गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि।
 (गंध, अक्षत, पुष्प अर्पण करें)
घंटी को एक बार दाहिने हाथ से बजाएं और उसे स्थान पर रखें। हल्दी कुमकुम अक्षत अर्पण करें।
हरिद्राकुंकुमं सौभाग्यद्रव्यं समर्पयामि।

दीप पूजनम्:
अपने मन से प्रार्थना करें कि पूजा पुरी होने तक दीपक जलता रहे।
घी और तेल के अखंड दीपकों को धूप, अक्षत, फूल, हल्दी और कुंकू चढ़ाकर पूजा करें। निम्नलिखित मंत्र का उच्चार करें।
भो दीप ब्रह्मरुपस्त्वं ज्योतिषां प्रभुरव्य:।
यावत् पूजा समाप्ति: स्यात् तावत्त्वं सुस्थिरो भव॥

(पूजा करके दीपकों को प्रणाम करें)

(दूध में शक्कर मिलाकर नैवेद्य अर्पण करें।) (भोग (नैवेद्य) लगाते समय पात्र के नीचे जल का मंडल बनाएं और दाहिने हाथ या हथेली से या पूजा के चमच से चारों ओर पानी घुमाये।)
शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। नैवेद्यं निवेदयामि ॥

(प्रसाद चढ़ाते समय निम्न मंत्र का जाप करें )
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अब नैवेद्यमध्ये पानीयं समर्पयामि। कहते हुए एक बार थाली में पानी छोड़ दें।

दूसरी बार फिर से बोलें
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अगले तीन मंत्रों का उच्चारण करते थाली में तीन बार जल छोड़े।
उत्तरापोशनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
मुखप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)

ताम्बूलम्: पार्थिवमहागणपतये नमः। ताम्बूलम् समर्पयामि। (तांबुल अर्पित करें, चौकी पर बाईं ओर स्थित पहले तांबुल पर जल छोड़ें।)

शुद्धीकरण :
बाएं हाथ में जल और दाहिने हाथ में फूल लेकर फूल से निम्न मंत्र का जाप करते हुए अपने ऊपर और पूजा सामग्री पर जल का छिड़काव करें-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्‌ पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः ॥

श्री गणेश पूजनम्:

षोडशोपचार पूजा:

ध्यानम्: हाथ जोडकर प्रार्थनापूर्वक ध्यान करें।

ॐ भूर्भुव: स्वः। ॐ श्री पार्थिवमहागणपति देवताभ्यो नमः। ध्यायामि।
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगन सदृशं मेघवर्ण शुभांगम् ।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं
वन्दे विष्णु भवभयहरं सर्व लौकेक नाथम् ॥
नमस्ये सर्वलोकानां जननीमब्जसम्भवाम् ।
श्रियमुन्निद्रपद्माक्षीं विष्णुवक्षःस्थलस्थिताम् ॥
या कुंदेंदु तुषार हार धवला या शुभ्र वस्त्रव्रिता |
या वीणा वरा दंडमंडित करा या श्वेत पद्मासना ||
या ब्रह्मच्युत शंकरा प्रभुतिभी देवी सदा वन्दिता |
सामा पातु सरस्वती भगवती निशेश्य जाड्या पहा ||
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु‍ते।
नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।
नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम्‌ ॥
सशंख चक्रं सकिरीटकुण्डलं, सपीत वस्त्रं सर्सिरुहेक्षनं ।
सहार वक्षस्थलकौस्तुभश्रियं, नमामि विष्णुं शिरसा चतुर्भुजं ।।
गजाननं भूतगणाधिसेवितं, कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥

ॐ भूर्भुव: स्वः। ॐ श्री पार्थिवमहागणपतये नमः। ध्यानं समर्पयामि ।

आवाहन:

अब चौकी पर रखी गणेश प्रतिमा में भगवान गणेश का आवाहन करें।

पार्थिवमहागणपतये नमः। महागणपतिम् आवाहयामि। (गणेश जी की मूर्ति पर अक्षत चढ़ाएं।)

पार्थिवमहागणपतये नमः। महागणपतिम् स्थापयामि पूजयामि (गणेश जी की मूर्ति पर अक्षत चढ़ाएं।)

प्राणप्रतिष्ठा:

मूर्तौ देवत्वसन्निधानेन पूजार्हता सिद्ध्यर्थं प्राणप्रतिष्ठां करिष्ये

दुर्वा दाहिने हाथ में रखते हुये उसके अग्र गणेशमूर्ती की छाती पर छुते हुये निम्न मंत्र कहे।

अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: रक्षन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्र्चन॥

निम्न मंत्र कहते हुये दुर्वा के अग्रभाग में घी लगाकर गणेशमूर्ती की आंखों पर छुते हुये भगवान गणेश की आखों को खोले।

ज्ञानतेजोमये नेत्रे जगन्मंङ्गल कारके।
उन्मीलिते मया भक्त्या माङ्गल्यं परिवर्धताम्॥

निम्न मंत्र कहते हुये भगवान गणेश की प्राण शक्ती को वंदन करते हुए मूर्ती के पैरोंपर गंध, अक्षत, दूर्वा एवं फूल अर्पण करें।

सच्चिदानन्दरुपा या सर्वचैतन्यदायिनी।
प्राणरुपा पराशक्ति: सर्वान् रक्षतु सन्ततम्॥
प्राणशक्त्यै नम: । गंधाक्षतपुष्पं समर्पयामि॥ नमस्कारोमि ॥

मुख्य पूजा:

आसनम्: (अक्षता अर्पण करें।)
विचित्ररत्नरचितं दिव्यास्तरणसंयुतम्‌ ।
स्वर्णसिंहासनं चारु गृहाण सुरपूजित ॥

पार्थिवमहागणपतये नमः। आसनार्थे अक्षतां समर्पयामि।
(गणेश जी की मूर्ति पर अक्षत चढ़ाएं।) वंदन करें।

पाद्यं: – मूर्ति पर दूर्वा या फूल से जल छिड़कें
पाद्यं गृहाण देवेश सर्वक्षेमसमर्थ भो। भक्त्या समर्पितं देव लोकनाथ नमोऽस्तु ते॥
पार्थिवमहागणपतये नमः।
पादयो: पाद्यं समर्पयामि।

अर्घ्यं: – मूर्ति पर पूजा के चमच में गंध-अक्षत-रुपये के सिक्के के साथ मिश्रित पानी का दूर्वा या फूल से छिड़काव करें।
ॐ त्रिपादूर्ध्वउदैत्पुरुष: पादोस्येहा भवत्पुन:। ततो विष्वङ्व्यकामत्स: शनानशनेअभि॥ नमस्ते देवदेवेश नमस्ते धरणीधर। नमस्ते जगदाधार अर्घ्यं नः प्रतिगृह्यताम्॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। अर्घ्यं समर्पयामि।

आचमनीयं: – मूर्ति पर दूर्वा या फूल से जल छिड़कें।
विनायक नमस्तुभ्यं त्रिदशैरभिवन्दित। गङ्गह्रुतेन तोयेन शीघ्रमाचमनं कुरु॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। आचमनीयं समर्पयामि।

स्नानं: – मूर्ति पर दूर्वा या फूल से जल छिड़कें।
गंगा सरस्वती रेवा पयोष्णी नर्मदाजलैः। स्नापितोऽसी मया देव तथा शांति कुरुष्व मे ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। स्नानं समर्पयामि।

पंचामृत स्नानम्: – मूर्ति पर दूर्वा या फूल से दूध, दही, शहद, चीनी और घी आदि या सभी को अलग-अलग मिलाकर उस समय निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए।
पंचामृतं मयानीतं पयो दधि घृतं मधु ।
शर्करया समायुक्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। पंचामृत स्नानम् समर्पयामि।

दुग्ध स्नानम्: (मूर्ति पर दूर्वा से कच्चा दूध छिड़कें।)
कामधेनुसमुत्पन्नां सर्वेषां जीवनं परम्‌ ।
पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम्‌ ॥
ॐ पयः पृथिव्यां पय औषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। पयः स्नानं समर्पयामि ।
पयः स्नानान्तरेण शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
 (दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)

दधि स्नानम्: (मूर्ति पर दूर्वा से दही छिड़कें।)
पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम्‌ ।
दध्यानीतं मया देव स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः
सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू(गुँ)षि तारिषत्‌ ।

पार्थिवमहागणपतये नमः। दधिस्नानं समर्पयामि।
दधिस्नानान्तरेण शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
 (दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)

घृत स्नानम्: (शुद्ध घी से स्नान कराएं)
नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम्‌ ।घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ घृतं घृतपावनः पिबत वसां वसापावनः
पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा ।
दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। घृतस्नानं समर्पयामि ।
घृतस्नानान्तरेण शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।
(दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)

मधु स्नानम्: (शहद से स्नान कराएं)
तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।
तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः । माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ॥
मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव(गुँ) रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ॥
मधुमान्ना वनस्पतिर्मधुमाँ(गुँ) अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवंतु नः ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः।मधुस्नानं समर्पयामि ।
मधुस्नानन्तरेण शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि। 
(दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)

शर्करा स्नानम्: (शक्कर से स्नान कराएं)
इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका।
मलापहारिका दिव्या स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ अपा(गुं), रसमुद्वयस(गुं) सूर्ये सन्त(गुं) समाहित्‌म ।
अपा(गुं) रसस्य यो रसस्तं वो
गृह्याम्युत्तममुपयामगृहीतो-सीन्द्राय त्वा जुष्टं
गुह्ढाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः।
शर्करास्नानं समर्पयामि।
शर्करा स्नानान्तरेण पुनः शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।
 (दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)

(दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।).
पार्थिवमहागणपतये नमः। पंचामृत स्नानांतरेण शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकते समय बोले …
पार्थिवमहागणपतये नमः। आचमनीयं समर्पयामि।

(मूर्ती पर गंध लगाएं)
पार्थिवमहागणपतये नमः। गंधम् समर्पयामि।

(गणेश मूर्ती पर दुर्वा, लाल फूल, ऋतु कालोद्भव फुल अर्पण करें।)
पार्थिवमहागणपतये नमः। पुष्पं समर्पयामि।

(बाएं हाथ से घंटी बजाते समय दाहिने हाथ से अगरबत्ती या धूप दिखाएं)
पार्थिवमहागणपतये नमः। धूपं आघ्रापयामि।

(बाएं हाथ से घंटी बजाते हुए दाहिने हाथ से दीपक दिखाएं)
पार्थिवमहागणपतये नमः। दिपं दर्शयामि।

(कलाकंद, पेड़ा और अन्य मिठाइयां चढ़ाएं) (भोग (नैवेद्य) लगाते समय पात्र के नीचे जल का मंडल बनाएं और दाहिने हाथ या हथेली से या पूजा के चमच से चारों ओर पानी घुमाये।)
शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। नैवेद्यं निवेदयामि ॥

(प्रसाद चढ़ाते समय निम्न मंत्र का जाप करें )
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अब नैवेद्यमध्ये पानीयं समर्पयामि। कहते हुए एक बार थाली में पानी छोड़ दें।

दूसरी बार फिर से बोलें
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अगले तीन मंत्रों का उच्चारण करते थाली में तीन बार जल छोड़े।
उत्तरापोशनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
मुखप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)

ताम्बूलम् : पार्थिवमहागणपतये नमः। ताम्बूलम् समर्पयामि। (तांबुल अर्पित करें, चौकी पर बाईं ओर स्थित दूसरे तांबुल पर जल छोड़ें।)

प्रार्थनाम् : पार्थिवमहागणपतये नमः। अनेन कृतपूजनेन श्री पार्थिवमहागणपतदेवता: प्रीयन्ताम्। (बाएं हाथ से दाएं हथेली पर एक बार पानी छोड़ दें।)

उत्तरे निर्माल्यं विसृज्य। अभिषेकं कुर्यात ॥ कहते हुए गणेशमूर्ती पर चढ़ाए हुए सारे फूल उतार कर उसे सूंघ कर, उत्तर दिशा की ओर रख दें।

अभिषेक: (ॐ गं गणपतये नमः इस मंत्र का १०८ बार जाप करते हुए या श्री गणपती अथर्वशीर्ष कहते हुए अभिषेक करें।)

श्री गणपती अथर्वशीर्ष पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें ।

अभिषेक करते समय याद रहे दूर्वा या फूल से गणपती जी की पार्थिव मूर्ती पर अभिषेक करते समय पानी का कम उपयोग करे। क्योंकि मूर्ति या तो मिट्टी की बनी है एवं मूर्ति के रंग उतर सकते है। यदि यह मूर्ति धातु की बनी हो तो इसे थाली में रखते हुए उसके ऊपर अभिषेक पात्र रखते हुए उस से अभिषेक करें या पूजा के चम्मच से निम्न मंत्र या गणपति अथर्वशीर्ष का 21 बार या 11 बार या पांच बार या एक बार जाप करते हुए अभिषेक करें। अभिषेक निम्न दिए गए ब्राह्मणस्पतिसुक्त या पुरुष सूक्त का जाप करते हुए भी किया जा सकता है।

ॐ सुरास्वामभिसिंचन्तु ब्रह्मविष्णूमहेश्वरा:।
वासुदेवो जगन्नाथस्तथा संकर्षणो विभु:॥१॥
प्रद्युम्नश्चानिरुद्धश्च भवन्तु विजयाय ते।
आखण्डलोऽग्निर्भगवान् यमो वै निऋतिस्तथा॥२॥
वरुण: पवनश्चैव धनाध्यक्ष स्तथा शिव:।
ब्रम्हणा सहिता: सर्वे दिक्पाला: पान्तु ते सदा॥३॥
किर्तिर्लक्ष्मीर्धुतिर्मेधा पुष्टि: श्रद्धा क्रिया मति:।
बुद्धिर्लज्जा वपु: शांति: कांतिस्तुष्टिश्च मातर:॥४॥
येता स्वामी सिंचन तु दैवज्ञ समा गतः पत्न्या
आदित्यश्चन्द्रमा भौमो बुधजीवसितार्कजाः ॥५॥
ग्रहास्त्वामभिषिझ्न्तु राहुः केतुश्च तर्पिताः।
देवदानवगन्धर्वा यक्षराक्षसपन्नगाः ॥६॥
ऋषयो मनवो गावो देवमातर एव च।
देवपत्न्यो द्रुमा नागा दैत्याश्चाप्सरसां तथा ॥७॥
अस्त्राणि सर्वशस्त्राणि राजानो वाहनानि च।
औषधानि च रत्नानि कालस्यावयवाश्च ये ॥८॥
सरितः सागराः शैलास्तीर्थानि जलदा नदाः।
अभिषिझ्न्तु ते सर्वे धर्मकामार्थसिद्धये ॥९॥

बायें हात से घंटी बजाये
अमृताभिषेकोऽस्तु।।
शान्ति: पुष्टिस्तुष्टिश्चास्तु ॥

उन्मर्दनम् गंधोंदकस्नानं: – मूर्ति पर इत्र, गंध, हल्दी और कुंकू मिलाकर जल छिडकें।
ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम्। ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोपह्वये श्रियम्॥
कर्पूरैला समायुक्तं सुगंधिद्रव्यसंयुतं। गंधोदकं मया दत्तं स्नानार्थ प्रतिगृह्यतां॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। उन्मर्दनम् गंधोंदकस्नानं समर्पयामि।

तैलाभ्यंग स्नानं: – मूर्ति पर फूलों से सुगंधित तेल या इत्र लगाएं।
पार्थिवमहागणपतये नमः। तैलाभ्यंगस्नानं समर्पयामि।

(दूर्वा से पुनः स्वच्छ जल छिडकें।)
पार्थिवमहागणपतये नमः। शुद्धोदक स्नानं समर्पयामि।

मांगलिक स्नानं: – थोड़ा गर्म पानी छिडकें।
स्नानार्थं जलमानीतं शीतमुष्णं यथा रुचि । सुगंधितं सर्वनदीतीर्थेभ्यः प्रतिगृह्यतां ॥
ॐ पार्थिवमहागणपतये नमः। मांगलिक स्नानं समर्पयामि।

आचमन के लिए थाली में जल छोड़े.:-
वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥

नाना परिमल द्रव्य: अबीर, गुलाल, हल्दि, कुमकुम इत्यादि अर्पण करें।
अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम्‌ ।
नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।

वस्त्र एवं उपवस्त्र: – निम्न मंत्र कहते हुए वस्त्र अर्पण करें ।
शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम्‌ ।
देहालंकरणं वस्त्रमतः शांति प्रयच्छ मे ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। वस्त्रं समर्पयामि ।

निम्न मंत्र कहते हुए उप-वस्त्र अर्पण करें ।
यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन सिध्यति ।
उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। उपवस्त्रं समर्पयामि ।

(कपास का गेज वस्त्र मूर्ती को पहनाएं)
पार्थिवमहागणपतये नमः। वस्त्रोपवस्त्रार्थे कार्पासवस्त्रम् समर्पयामि।

(यज्ञोपवित अर्पण करें, अगर यज्ञोपवित न् हो तो अक्षत अर्पण करें)
पार्थिवमहागणपतये नमः। यज्ञोपवितम् समर्पयामि।

आभूषणम्: (आभूषण, कंठी, अलंकार, हार अर्पण करें।)
नानाविधानि दिव्यानि नानारत्त्नोज्ज्वलानि च ।
भूषणानि गृहाणेश पार्वतिप्रियनन्दन ॥


पार्थिवमहागणपतये नमः। नानाविधानि कुंडलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि ।

चन्दनम्: (केसर मिश्रित चन्दन अर्पण करें)
श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्‌।
विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः।गन्धं समर्पयामि।

रक्त चन्दनम्: (रक्त चंदन, लाल चंदन का तिलक गणेशजी को लगाएं।)
रक्तचन्दनसम्मिश्रं पारिजातसमुद्भवम्‌।
मया दत्तं गणपती चन्दनं प्रतिगृह्यताम ॥ पार्थिवमहागणपतये नमः। रक्तचन्दनं समर्पयामि।

अक्षत: (कुंकुम मिश्रित अक्षता अर्पण करें)
अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः।
मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वर ॥ पार्थिवमहागणपतये नमः। अक्षतान्‌ समर्पयामि।

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सिन्दूरम्: (शेन्दूर अर्पण करें)
सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।
भक्तया दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूघनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।
घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। सिन्दूरं समर्पयामि।

गणपति के साथ जो उनके साथ जुड़ी हुई रिद्धि सिद्धि देवता है उन्हें निम्न मंत्र कहते हुए क्रम से हल्दी, कुमकुम, काजल, मंगलसूत्र, चूड़ियां और ताड़ पत्र अर्पण करें।

हरिद्रा: (हल्दी अर्पण करें।)
हरिद्रा स्वर्णवर्णाभा सर्व सौभाग्यदायिनी ।
सर्वालंकारमुख्या हि देवि त्वं प्रतिगृह्यताम् ॥ पार्थिवमहागणपतये नमः। श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:।
हरिद्राम् समर्पयामि।

कुंकुमम्: (कुंकुम अर्पण करें।)
कुंकुमं कामदं दिव्यं कुंकुमं कामरूपिणम्‌ ।
अखण्डकामसौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥ पार्थिवमहागणपतये नमः। श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। कुंकुमं समर्पयामि।

कज्जलं: (काजल अर्पण करें। )
कज्जलं कामिकं रम्यं कामिनीकामसंभवम् ।
नेत्रयोर्भुषणार्थाय कज्जलं प्रतिगृह्यताम्॥
ॐ पार्थिवमहागणपतये नमः। श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। कज्जलं समर्पयामि।

मंगलसूत्र: (देवियों को मंगलसूत्र अर्पण करें यदि न् हो तो अक्षत अर्पण करें।)
मांगल्यतंतुमणिभिर्मुक्ताफलविराजितम् ।
कंठस्य भूषणार्थाय कंठसूत्रं प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। कंठसूत्रम् समर्पयामि

कंगन / चूड़ीयां: (देवियों को कंगन अर्पण करें यदि न् हो तो अक्षत अर्पण करें।)
काचस्य निर्मितं दिव्यं कंकणं च सुरेश्वरी।
हस्तालंकरणार्थाय कंकण प्रतिगृह्यताम् ॥
श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। कंकणं समर्पयामि ।

ताड़पत्र: (देवियों को ताड़पत्र अर्पण करें यदि न् हो तो अक्षत अर्पण करें।)
नानाभरणशोभाढ्यं नानारत्नोपशोभितम्।
अर्पितं च मया देवि ताड़पत्रं प्रतिगृह्यताम्
श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। ताड़पत्रं समर्पयामि ।

सिंदुरम्: (देवियों को सिंदूर अर्पण करें यदि न् हो तो अक्षत अर्पण करें।)
उद्यद्भास्करसंकाशं संन्ध्यावदरुणंप्रभो ।
वीरालंकरणं दिव्यं सिंदुरं प्रतिगृह्यताम्॥
श्री ऋद्धिसिद्धिभ्यां नम:। सिंदुरम् समर्पयामि ।

पुष्पसार (अत्तर) : (फूल से गणेशजी को इत्र लगाए।)
तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।
मया दत्तानि लेपार्थं गृहाण परमेश्वर ॥ पार्थिवमहागणपतये नमः। पुष्पसारं च समर्पयामि।

पुष्पमाला: (देवता को लाल कमल या गुलाब के फूल और माला से सजाएं।)
माल्यादीनि सुगन्धीनि माल्यादीनि वै प्रभो ।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥
ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।

शमीपत्र: (निम्न मंत्र के साथ शमीपत्र अर्पण करें।)
तपस: शम आधार: शम: शान्ति प्रयच्छति ।
तदर्थं ते प्रयच्छामि शमीपत्रं गजानन ॥
ॐ पार्थिवमहागणपतये नमः। शमीपत्राणि समर्पयामि।

दूर्वा: (गणेशजी को श्रीगणेशअष्टोत्तरशत नामावली कहते हुए 108 दूर्वा अर्पण करें।
दूर्वांकुरान्‌‌ सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान् ।
आनीतांस्तवपूजार्थं गृहाण गणनायक ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। दूर्वांकुरान्‌‌ समर्पयामि।
 (दूर्वांकुर अर्पण करे।)

कुंकू मिश्रित अक्षत से गणपति के विभिन्न अंगों की पूजा करें। :-

अंग पूजा:
ॐ श्री गणेश्वराय नमः। पादौ पूजयामि। (दोनों पैर)
ॐ श्री विघ्नराजाय नमः। जानुनी पूजयामि। (दोनों घुटने)
ॐ श्री आखुवाहनाय नमः। उरु पूजयामि। (दोनों जंघा)
ॐ श्री हेरंबाय नमः। कटिं पूजयामि। (कमर)
ॐ श्री कामारीसूनवे नमः। नाभिं पूजयामि। (नाभि)
ॐ श्री लम्बोदराय नमः। उदरं पूजयामि। (पेट)
ॐ श्री गौरीसुताय नमः। स्तनौ पूजयामि। (स्तन)
ॐ श्री गणनायकाय नमः। हृदयं पूजयामि। (छाती पर)
ॐ श्री स्थुलकर्णाय नमः। कण्ठं पूजयामि। (गलेपर)
ॐ श्री स्कन्दाग्रजाय नमः। स्कंधौ पूजयामि। (कंधे)
ॐ श्री पाशहस्ताय नमः। हस्तौ पूजयामि। (दोनों हात)
ॐ श्री गजवक्त्राय नमः। वक्त्रं पूजयामि। (मुख पर)
ॐ श्री विघ्नहर्त्रे नमः। ललाटं पूजयामि। (माथे पर)
ॐ श्री सर्वेश्वराय नमः। शिरः पूजयामि। (मस्तक)
ॐ श्री गणाधिपाय नमः। सर्वांग पूजयामि। (पूरे शरीर पर अक्षत डाले)

विविध पत्री पूजा: (निवड मंत्र कहते हुए सामने लिखे हुए पत्री भगवान की मूर्ति पर चढाई आहे यादी वह पत्री उपलब्ध ना हो तो अक्षत चढाये)
सुमुखाय नमः। मालतीपत्रम् समर्पयामि ॥ (मधुमालती)
गणाधिपाय नमः । भृगराजपत्रम् समर्पयामि॥
(माका)
उमा पुत्राय नमः। बिल्वपत्रम् समर्पयामि॥
(बेलपत्र)
गजाननाय नमः। श्वेतदुर्वा समर्पयामि॥ (सफेद दूर्वा)
लंबोदराय नमः। बदरीपत्रम् समर्पयामि॥
(बेर के पत्ते)
हरसूनवे नमः। धत्तूरपत्रम् समर्पयामि॥ (धत्तूरा)
गजकर्णाय नमः। तुलसीपत्रम् समर्पयामि॥ (तुलसी)
वक्रतुण्डाय नमः। शमीपत्रम् समर्पयामि॥ (शमी)
गृहाग्रजाय नमः। अपामार्ग पत्रम् समर्पयामि॥ (आघाड़ा)
एकदंताय नमः। बृहतीपत्रम् समर्पयामि॥ (डोरली)
विकटाय नमः। करवीपत्रम् समर्पयामि॥ (कण्हेर)
कपिलाय नमः। अर्कपत्रम् समर्पयामि॥ (रुई)
गजदंताय नमः। अर्जुन पत्रम् समर्पयामि॥ (अर्जुनसाल)
विघ्नराजाय नमः। विष्णुकांता पत्रम् समर्पयामि॥ (विष्णुकांता)
बटवे नमः। दाडिमी पत्रम् समर्पयामि॥ (दालिम)
सुराग्रजाय नमः। देवदारु पत्रम् समर्पयामि॥ (देवदार)
भालचंद्राय नमः। मरुपत्रम् समर्पयामि॥ (मरवा)
हेरंबाय नमः। अश्‍वत्थ पत्रम् समर्पयामि॥ (पिपल)
चतुर्भुजाय नमः। जातिपत्रम् समर्पयामि॥ (जाई)
विनायकाय नमः। केतकी पत्रम् समर्पयामि॥ (केवड़ा)
सर्वेश्वराय नमः। अगस्ती पत्रम् समर्पयामि॥
(अगस्ती)

धूप : (निम्न मंत्र कहते हुए धूप दिखाए।)
दशांगं गुग्गुलं धुपं सुगन्धं मनोहरम् ।
गृहाण सर्वदेवेश उमापुत्र नमोस्तुते॥
ॐ पार्थिवमहागणपतये नमः। धूपम् अघ्रापयामि ।

दीपम् : (निम्न मंत्र कहते हुए दीप दिखाए।)
सर्वज्ञ सर्वलोकेश त्रैलोक्य तिमिरापह ।
गृहण मंगलम दीपं रुद्रप्रिय नमोस्तुते॥
ॐ पार्थिवमहागणपतये नमः। दीपं दर्शयामि ।

ऋतुफल अर्पण: (ऋतुफल चढ़ाएं) (सीतापाल, सेब, गन्ना और अन्य फल)
फलेन फलितं सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम्‌ ।
तस्मात्‌ फलप्रदादेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। अखण्डऋतुफलं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।
 (आचमन के लिए थाली में पानी छोड़े।)

कलाकंद, पेड़ा और अन्य मिठाइयां चढ़ाएं) (भोग (नैवेद्य) लगाते समय पात्र के नीचे जल का मंडल बनाएं और दाहिने हाथ या हथेली से या पूजा के चमच से चारों ओर पानी घुमाये।)
नैवेद्यं गृह्यतां देव भक्तिं मे ह्यचलां कुरु । ईप्सितं मे वरं देहि परत्र च परां गतिम् ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। नैवेद्यं निवेदयामि ॥

(नैवेद्य सपर्पण के समय निम्न मंत्र का जाप करें )
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अब नैवेद्यमध्ये पानीयं समर्पयामि। कहते हुए एक बार थाली में पानी छोड़ दें।

दूसरी बार फिर से बोलें
ॐ प्राणाय स्वाहा। ॐ अपानाय स्वाहा। ॐ व्यानाय स्वाहा। ॐ उदानाय स्वाहा। ॐ ब्रह्मणे स्वाहा।
अगले तीन मंत्रों का उच्चारण करते थाली में तीन बार जल छोड़े।
उत्तरापोशनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
मुखप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)
हस्तप्रक्षालनं समर्पयामि। (एक बार थाली में पानी छोड़ दें।)

ताम्बूलम्: (लौंग, इलायची, तांबुल अर्पित करें।)
पूगीफलं महादिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम्‌ ।
एलादिचूर्णसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम्‌ ॥

पार्थिवमहागणपतये नमः। मुखवासार्थे पूगीफल ताम्बूलं समर्पयामि।

(तांबुल अर्पित करें, चौकी पर स्थित बाईं ओर से चौथे तांबुल पर जल छोड़ें।)

महादक्षिणा: (दक्षिणा अर्पण करें)
हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।
अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥
ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम्‌ ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान्‌ विन्देयं पुरुषानहम्‌ ॥पार्थिवमहागणपतये नमः। दक्षिणां समर्पयामि ।

(तांबुल अर्पित करें, चौकी पर स्थित बाईं ओर से चौथे तांबुल पर जल छोड़ें।)

दुर्वा समर्पण: इक्कीस दूर्वा की जुडी लेकर निम्न मंत्र कहते हुए हर बार दो-दो दुर्वा गंध अक्षत लेकर गणेशजी को अर्पण करें।

गणाधिपाय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
उमापुत्राय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
अघनाशाय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
विनायकाय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
ईशपुत्रा नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
सर्वसिद्धीप्रदायकाय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
एकदंताय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
इभवक्त्राय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
आखुवाहनाय नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥
कुमारगुरवे नमः । दुर्वायुग्मं समर्पयामि ॥

इस प्रकार से हरबार दो-दो दुर्वा बार हो चुकी है अब हाथ मे बची हुई एक दुर्वा लेकर निम्नमंत्र कहते हुए उसे भी अर्पण करे।

गणाधिप नमस्तेस्तु उमापुत्राघनाशन।
विनायकेशपुत्रेति सर्वसिद्धीप्रदायक॥
एकदंतेभवक्त्रेती तथा मूषकवाहन।
कुमारगुरवे नित्यं पुजयामि प्रयत्नत:॥
दुर्वामेकां समर्पयामि॥

महानिरांजन:
चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम्‌ ।
आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। नीराजनं समर्पयामि ।
 (गणेशजी की आरती का थाल लेकर आरती करें)

गणपती पारंपरिक मराठी आरती (सुखकर्ता दुखहर्ता)

गणेशजी हिन्दी आरती (शेन्दूर लाल चढ़ायो)

कर्पूर आरती: निम्न मंत्र कहते हुए कपूर जलाकर आरती करें, बाएं हाथ से घंटी बजाए।
कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।।
कर्पुरपूरेण मनोहरेण सुवर्णपात्रोदरसंस्थितेन।
प्रदीप्तभासा सह संगतेन नीराजनं ते जगदीश कुर्वे॥
कर्पूरार्तिक्यदीपं समर्पयामि

मंत्र-पुष्पांजलि:
(प्रत्येक हाथ में फूल दें और निम्न मंत्र बोलें)
ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन्‌ ।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥
ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।
स मे कामान्‌ कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु॥
कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।
ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं
महाराज्यमपित्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्‌ सार्वभौमः
सार्वायुषान्तादापरार्धात्‌ ।
पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति
तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन्‌ गृहे ।
आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।
ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्पात्‌ ।
सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्द्यावाभूमी जनयन्‌ देव एकः ॥
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्‌ ।
ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीःपापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्‌ ॥
पार्थिवमहागणपतये नमः। मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयामि ।

(गणपति को हाथ में रखे फूल चढ़ाएं।)

प्रदक्षिणा :
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।
तानि तानि विनश्यन्ति प्रदक्षिणपदे पदे ॥
 (प्रदक्षिणा अर्पण करें।)

क्षमा प्रार्थना:
हाथ मे थोडी अक्षत और फुल लेकर निम्न मंत्रो से गणपती की प्रार्थना करें
आवाहनं न जानामि न जानामि तवार्चनम् ।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यता परमेश्वर॥
मंत्र हिनं क्रिया हिनं भक्ती हीनं सुरेश्वर।
यत्पूजीतं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ॥
अन्यथा शरणं नास्ती त्वमेव शरणं मम।
तस्मात् कारुण्य भावेन रक्ष रक्ष परमेश्वर॥
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेअहर्निशं मया।
दासोयमिती मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर॥
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।
पुत्रान् देहि धनं देहि सर्वान् कामांश्च देहि मे॥
यस्य स्मृत्या च नामोक्त्या तप: पूजाक्रियादिषु ।
न्यूनं संपूर्णतां याति सद्यो वंदे तमच्युतम्॥
प्रार्थना पुष्पं समर्पयामि।

अब हाथ मे रखे फुल और अक्षत भगवान पर चढाईये
प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारम्‌ समर्पयामि। (प्रार्थनापूर्वक नमस्कार करें।)

समर्पण:
अब निम्न मंत्र कहते हुए थाली मे जल छोडे।
अनेन यथाज्ञानेन यथामिलितोपचारै: कृतपूजनेन श्री पार्थिवगणपतीदेवता प्रियताम् न मम।
तत् सद् ब्रम्हार्पणमस्तु।

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महालक्ष्मी आरती के लिये क्लिक करें।

प्रदक्षिणा अर्पण करें। साष्टांग नमस्कार करें। अब हाथ जोड़ें और निम्नलिखित क्षमा प्रार्थना कहें:-

क्षमा प्रार्थना :
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्‌ ॥
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे ॥
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव
त्वमेव सर्वम्‌ मम देवदेव ।
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।
त्राहि माम्‌ परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥
अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।
दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ॥

पूजन समर्पण: – हाथ में जल लेकर निम्नलिखित मंत्र का जाप करें।
ॐ अनेन यथाशक्ति अर्चनेन श्री पार्थिवमहागणपतप्रसीदतुः ॥
(थाली में पानी छोड़ दें, नमस्कार करें)

विसर्जन विधी:

उत्तर पूजा: गंध, अक्षत, हल्दी-कुमकुम, धूप, दीप, नैवेद्य आरती इत्यादि उपचार कर पूजा करें। उसके बाद विसर्जन मंत्र बोलकर अक्षत डाले। गणेशजी को अपने घर वापस लौटकर आने की बिनती करें। विसर्जन मिट्टी की मूर्ती हो तो घर में बाल्टी में कर सकते है, या तो नदी, तालाब, समुंदर में या विसर्जन के कुंड मे करें। विसर्जन करते समय हाथों से मूर्ती को बहा दे, गलती से भी जल में ऊपर ना फेंके।

विसर्जन: –
अब अक्षत को अपने हाथों में लेकर, अक्षत निम्‍न मंत्र से गणेश जी के ऊपर डालकर विसर्जन की विधि करें:-
यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम्‌ ।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरपि पुनरागमनाय च ॥

॥ हरी: ॐ ॥ ॥ हरी: ॐ ॥ ॥ हरी: ॐ ॥

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लक्ष्मी पूजन हिन्दी में (यथा विधी)

Diwali Laxmi Pujan in Hindi
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