महाशिवरात्री का महिमा | Significance of Mahashivratri (Mahashivaratri Ka Mahima)

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Mahashivaratri Ka Mahatva Hindi main | महाशिवरात्री का महत्व हिन्दी में

महाशिवरात्री का महिमा – Mahashivaratri Ka Mahima

महाशिवरात्री का व्रत उपवास, उपासना, जगराता तथा भगवान शिव जी की लिंग स्वरूप में पूजा कर मनाया जाता है। महाशिवरात्री पूरे उत्तर भारत में यह फागुन महीने की कृष्ण चतुर्दशी और महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत मे माघ कृष्ण चतुर्दशी के मनाया जाता है (अमांत और पूर्णिमांत हिंदू कैलेंडर प्रणाली के अनुसार)। पूरे साल भर मे बारह शिवरात्री आती है, उन्ही में से एक शिवरात्री (night of Shiva) महाशिवरात्री होती है जो अंग्रेजी कैलेंडर के फरवरी या मार्च के महीने मे आती है। यह उपासना पूरी रात भर की जाती है। महाशिवरात्री मनाने के अलग अलग संदर्भ है जो हम आगे जानेंगे।

हिंदू धर्म के शैव लोगों मे यह एक प्रमुख त्योहार है। हिंदू धर्म माननेवालों मे शैव और वैष्णव ऐसी दो शाखाएं है। शैव – जो भगवान शिव को पूजते है और वैष्णव – जो विष्णु को पूजते है। इस त्योहार का विशेष महत्व है जो “अंधेरे से उजाले की ओर एवं अज्ञान से ज्ञान की ओर’ जाने का रास्ता प्रशस्त करता है। इस दिन विधिवत शिव जी की पूजा कर, भजन, प्रार्थना, मंत्र जाप आदि करते हुए पूरी रात जागरण करते है।

बहोत से लोग शिव मंदिरों में शिवलिंग पर जल चढ़ाने जाते हैं, कई भक्त तीर्थ यात्रा पर जाते हैं। बारह (12) ज्योतिर्लिंग के मदिरों विशेष यात्रा का आयोजन होता है। गावों-गावों मे स्थानिक मंदिरों मे भी दिनभर काफी भीड़ रहती है। हिंदुओं के बाकी टोहार ए दिन के समय मनाते है, पर यही त्योहार ही ऐसा एक त्योहार है की जो रातभर मनाया जाता है।

महाशिवरात्री और शिव तांडव – Mahashivaratri and Shiv Tandav

शिवरात्री की रात भगवान शिव जी तांडव नृत्य करते है ऐसी मान्यता है। देव और दानवों ने मिलकर जो समुद्र मंथन किया था उस समय कई सारी चीजों के साथ हलाहल नां का जहर भी उत्पन्न हुआ था। हलाहल जहर उत्पन्न होते ही देवों समित दानवों को भी उसका दाह सहना मुश्किल हो रहा था। तब सभी ने मिलकर भगवान शिव को उन्हे बचाने की प्रार्थना करी। यह जहर पूरे ब्रह्मांड को जलाने की ताकद रखता है।

भगवान शिव ही थे जो इस को नष्ट कर सकते थे। सभी देवों और राक्षसों की प्रार्थना से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने इस हलाहल जहर का प्राशन किया (पिया)। उस के दाह से भगवान शिव का गला नीला हो गया और उनके गले में काफी जलन होने लगी। देवों के वैद्यों के सुझाव से उन्हे बिल्व पत्र का रस दिया गया तथा शरीर पर बिल्व पत्र का लेप लगाया और भगवान शिव पूरी रात जागते रहने के लिये कहा। गले को और ठंडक मिले इसलिये ठंडे खून वाले नाग को अपने गले के साथ लपेट लिया। हमाहल का असर कम करने के लिये भगवान शिव ने तांडव नृत्य करते रहे।

बिल्व पत्र के इस ठंडक देने वाले असर के कारण शिव जी को बेलपत्र प्रिय हुये ऐसी मान्यता है, इसीलिए शिव जी की पूजा बेलपत्र के अलावा अधूरी मानी जाती है।

अगले दिन का सूरज उगने तक सभी देव संगीत, गायन तथा नृत्य करते रहे, तभी भगवान के तांडव से हलाहल का असर कम हुआ। हलाहल से होनेवाली जलन कम होकर भगवान को पूरी तरह से आराम हुआ। सुबह भगवान शिव जी ने सभी को आशीर्वाद दिया, फिर सभी अपने अपने स्थान पर चले गए।

महाशिवरात्री अन्य मान्यता – Mahashivaratri and Other Theories

✅ कुछ लोग मानते है की यह दिन है जो भगवान शिव ने हलाहल जहर पिया था।

✅ कुछ मान्यता के अनुसार यह ऐसी रात है जिस रात शिव जी पूरी रात तांडव करते रहे।

✅ अन्य मान्यताों के अनुसार इसी दिन भगवान शिव अपने लिंग रूप मे प्रकट हुये थे।

✅ कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार यह दिन वो दिन है जिस दिन शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था।

Frequently Asked Questions.

What is the Starting point of Narmada Parikrama?

Narmada Parikrama starts from Omkareshwar Temple at Ujjain, Madhya Pradesh. By doing Sankalpa by worshipping Lord Shiva devotees start the Parikrama by collecting Narmada water from Omkareshwar.

What is the endpoint of Narmada Parikrama?

Narmada Parikrama ends at Omkareshwar Temple at Ujjain, Madhya Pradesh. By performing Abhisheka with the Holy water of Narmada to Lord Shiva devotees ends the Parikrama and finally, they perform Kumarika Poojan as the completion of their pilgrimage.

What is the total distance of Narmada Parikrama?

Narmada Parikrama is having a total walking distance of 3500 kilometres.

How many days does it take to complete the Narmada Parikrama?

Narmada Parikrama takes around 90 to 120 days and sometimes it is 6 months. It is one of the very tough pilgrimages as per Hindu religious practices.

Who has written the NarmadashTakam?

Adi Shankaracharya / Jagad Guru Shankaracharya a great Samskrut scholar and poet created the NarmadashTakam.

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