गुढीपाडवा क्यों मनाते है? | Why Maharashtra Celebrates Gudi Padwa in Hindi
Gudi Padwa 2022 यह एक हिंदुओं का नववर्ष त्योहार है जो खासकर महाराष्ट्र और गोवा इन राज्यों मे मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक चैत्र महीने के पहले दिन गुढीपाडवा होता है। हिंदू कैलेंडर के पहले दिन को संस्कृत में ‘प्रतिपदा’ और मराठी में “पाडवा” कहते है। गुढी का मतलब है पवित्र ध्वज या विजय का ध्वज। इस दिन भोर (जल्दी सुबह) के समय घर में गुढी (ध्वज) बनाकर घर के बाहर फहराया जाता है।
वेदांग ज्योतिष ग्रंथ के मुताबिक इस दिन को साढ़े-तीन मुहूरतों में से एक मुहूरत माना जाता है। इस दिन नए बिजीनेस, व्यापार की शुरुआत करना, दुकान का शुभारंभ या गृहप्रवेश करना, सोना (सुवर्ण) की खरेदी, वाहन खरेदी, नए उपक्रमों की शुरुआत के लिये सबसे अच्छा दिन माना जाता है।
यह दिन हिंदू मान्यता के मुताबिक, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोगों का नव वर्ष के शुरु होने का दिन है। इसी दिन से प्रभु श्री राम जन्म के उत्सव की शुरुआत होती है तथा माँ दुर्गा का नवरात्र प्रारंभ होता है। सिन्धी लोग इसे चेटीचंड नाम से मनाते है जो भगवान झूलेलाल का प्रगट होने का दिवस माना जाता है।
2022 के गुढीपाडवा की विशेषता | Specialties of Gudi Padwa 2022
मराठी विक्रम संवत | 2079 संवत |
श्री शालीवाहन शक संवत्सर | 1944, शुभाकृत नाम संवत्सर |
प्रथमा (प्रतिपदा) तिथी सुरवात | अप्रैल 1, 2022 के दिन सुबह 11:56:15 बजे से |
प्रथमा (प्रतिपदा) तिथी समाप्ती | अप्रैल 2, 2022 के दिन दोपहर 12:00:31 बजे तक |
इस साल विक्रम संवत 2079 का आरंभ होगा और श्री शालिवाहन शक 1944 प्रारंभ होगा, जिसका नाम “शुभाकृत” है।
2022 का गुढीपाडवा 2 अप्रैल 2022, शनिवार के दिन आ रहा है। चैत्र मास की प्रतिपदा 1 अप्रैल को सुबह 11:56:15 से शुरु हो रही है, लेकिन यह सूर्योदय के पश्चात होने के कारण सूर्योदय के समय की प्रतिपदा के दिन मतलब, शनिवार 2 अप्रैल को गुढी पाडवा मनाया जाएगा। प्रतिपदा तिथि की समाप्ति 2 अप्रैल को दोपहर 12:00 के बाद होंगी।
हिंदू नव वर्ष को संस्कृत में “संवत्सर” नाम से जाना जाता है और यह प्रतिपदा के दिन से शुरू होता है। पंचांग के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नव संवत्सर प्रारंभ होता है।
जिस दिन से नववर्ष की शुरुआत होती है उसी दिन के ग्रह को वर्षेश या नवा वर्ष का स्वामी कहते है, इस साल गुढीपाडवा शनिवार के दिन आने के कारण इस साल वर्षेश होंगे शनिदेव।
गुढी पाडवा के दिन हिंदू संस्कृृती की झाँकी दिखाने के लिये जुलूस निकाले जाते हैं। महिला, पुरुष, बच्चे अपने पारंपरिक परिवेश पहनकर जिसमें पुराणों के चरित्र पात्रों के जैसे श्रीराम, कृष्ण या खासकर शिवाजी महाराज जैसे चरित्रों की झाँकीया प्रस्तुत करते है। इन झाँकीयों मे स्त्री एवं पुरुष महाराष्ट्र का पारंपारिक ढोल-ताशा एवं झांझ तथा लेझिम के साथ नृत्य करते है। इसी के साथ वीर रस दिखानेवाले आयुध जैसे तलवार, दांडपट्टा, भाला लेकर उसके साथ युद्ध के करतब दिखाए जाते है, आज इन सभी मे महिलाएं भी पुरुषों के साथ उतने ही उत्साह से शामिल होती हुई दिखती है।
गुढी की पुजा विधी | How to do Gudi Padwa Puja
गुढी को विजय पताका य ब्रह्मध्वज भी कहते है। गुढी की पुजा हर कोई छोटा या बड़ा आसानी से करा सकता है।
गुढी पाडवा के दिन जल्दी सुबह तैल अभ्यंग (तैल से स्नान) करने के बाद गणपती और अन्य देवताओं की पूजा कर गुरु और घर के बड़ों के आशीर्वाद लिये जाते है।
जहां पर गुढी खड़ी करनी है उस जगह को पानी से अच्छी तरह से साफ कर, या गोबर से लिपाई कर, रंगोली से स्वस्तिक बनाते है। लंबी ऊँची बम्बू की छड़ी को कडूनिंब के पेड़ की डाली लगाकर, छड़ी के उपरी हिस्से पर सिल्क का कपड़ा या साड़ी बांधते है, फुलों का हार और शक्कर के गाठों की माला बांधकर उस पर तांबा /पीतल / चाँदी का कलश बिठाते है, गुढी का यह बंम्बू लकड़ी के आसन पर खड़ा किया जाता है। तैयार गुड़ी को पहले से तैयार की हुई जगह जैसे दरवाजे पर, ऊंची मंजिल पर खड़ा कर बांध कर रखा जाता है।
इसके बाद गुढी की चंदन या गंध, फूल, अक्षत अर्पण करते हैं और घी का दीपक जलाकर आरती उतारते है और धूप दिखाते हैं। दोपहर में गुढी को मिठाई का भोग लगाया जाता है और फिर से शाम को हल्दी और कुमकुम के फूलों के साथ पुजा कर इसे उतारा जाता है। इस दिन परिवार जनों, मित्रों, सगे संबधियों को नए साल की शुभकामनाएं और गुडीपड़वा की शुभकामनाएं देकर यह त्योहार मनाया जाता हैं।
गुढी पाडवा के अलग नाम | Gudi Padwa is Also Known As…
चैत्र शुद्ध प्रतिपदा इस दिन को अलग-अलग नामों से और अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। प्रमुख तौर पर यह महाराष्ट्र में गुढी पाडवा के नाम से मनाते है। कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश इन राज्यों में जो खास कर गौतमिपुत्र द्वारा शासित राज्यों मे यह विजयदीन के तौर पर पाड्यमी, उगादी या युगादी नाम से मनाते है।
गोवा राज्य मे यह त्यौहार सौसार पाडवो या सौसार पाडयो या संवत्सर पड़वो नाम से मनाते हैं। मुख्य रूप से महाराष्ट्र में, इस त्योहार को गुढी पाडवा कहा जाता है। सिंधी लोग इस त्योहार को भगवान झूलेलाल के प्रगट दिवस के और पर चेतीचंद नाम से मनाते हैं। इस दिन ताहिरी (मीठे चावल) और साई भाजी (चना दाल के साथ पका हुआ पालक) जैसे व्यंजन बनाकर मनाया जाता है।
जम्मू और कश्मीरी हिन्दू इस दिन को नवरेह के तौर पर मनाते हैं। मणिपुर में यह दिन सजिबु नोंगमा पानबा या मेइतेई चेइराओबा कहलाता है।
गुढी पाडवा और महाराष्ट्र की परंपरा | Gudi Padwa and tradition of Maharashtra
- गुढी पाडवा के दिन सुबह जल्दी उठकर तैल अभ्यंग (तैल से स्नान) करने की प्रथा है।
- कडवे नीम के पत्तों को नहाने के पानी मे मिलाकर नहाया जाता है। कडवे नीम मे एंटी फंगल और एंटी सेप्टिक गुण होने की वजह से गर्मी के मौसम मे यह औषधी के तौर पर उपयोग करते है।
- इस दिन महिलायें आँगन मे विशेष पारंपरिक रंगोली बनाती है जिसे “चैत्रांगण” कहते है। गुढी पाडवा से लेकर राम नवमी के दिन तक हर रोज गोबर से जमीन को लिपाई कर यह “चैत्रांगण” की रंगोली बानाते है।
- इस दिन मराठी घरों में श्रीखंड-पूरी या पुरन पोली या सेंवई या चावल से बनी खीर और पूरी बनाते है।
- सभी लोग इस दिन नए कपड़े पहनते है।
- नए काम की शुरुआत इसी दिन से करने की मान्यता है।
- पुजा के बाद घर के बुजुर्ग वर्ष-फल (साल का भविष्य) सुनाते है और सारे घर के सदस्य इसे सुनते है।
- सुबह कुछ भी खाने से पहले कडवे नीम के फूल और पत्ते, काली मिर्च, इमली और गुड़ इत्यादी मिलाकर चटनी बानाकर खाने का रिवाज है। इसे शरीर शुद्धी के लिये प्रशाद के रूप मे खाया जाता है।
- महिलायें चैत्रा गौरी के पूजन की शुरुआत करती है।
- मराठी घरों मे प्रभू श्रीराम का नवरात्र मनाते है। यह शुक्ल पक्ष की नवमी तक मनाते है जिसे राम नवमी के नाम से जाना जाता है। इन दिनों राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करते है। यह पढें राम रक्षा मंत्र लिरिक्स हिन्दी में
- यह पढें राम रक्षा मंत्र ओडियो
गुढी पाडवा का पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Gudi Padwa
माना जाता है की परमपिता ब्रह्मा ने इस दिन समय और ब्रह्मांड की रचना की थी, सृष्टी निर्मिती के प्रथम दिवस के तौर पर मनाया जाता है। यह त्योहार उसी पौराणिक दिन से जुड़ा है।
कुछ लोगों के लिए, यह दिन दुष्ट रावण पर अपनी जीत के बाद प्रभू श्रीराम के अयोध्या आने तथा उनके राज्याभिषेक की याद मे मनाते है।
गुढी पाडवा का सांस्कृतिक महत्व | Cultural Importance of Gudi Padwa
गुड़ी पड़वा वसंत ऋतु के आगमन का प्रतिक माना गया है। किसानों के लिये यह रबी फसलों की कटाई का प्रतीक माना गया है, इस दिन नई फसल के लिये जमीन को उपजाऊ बनाने के लिये हाल चलाया जाता है।
गौतमिपुत्र शातकर्णी उर्फ राजा शालिवाहन ने महाराष्ट्र मे क्षत्रप, महाक्षत्रप, शक और यवनों को युद्ध मे हरा कर सौराष्ट्र, कोंकण, आंध्र और कर्नाटक मे अपने राज्य का विस्तार करते हुये खुद को सार्वभौम राजा घोषित किया। उसी दिन से श्री शालीवाहन शक संवत्सर का प्रारंभ होता है।
गुढीपाडवा का आध्यात्मिक महत्व | Spiritual Significance of Gudi Padwa 2022
गुढीपाडवा एक विजय दिवस माना जाता है जहां प्रभु श्री राम ने रावण वध कर अयोध्या वापस लौटे थे। इस के लिये उनके स्वागत के लिये आयोध्या के लोगों ने उनके स्वागत के लिये अपने घरों के बाहर गुढी/ विजय ध्वज/ विजय पताका फहराए थे ऐसी मान्यता है।
यह गुढी को झुकी हुई स्थिति में खड़ा किया जाता है जिससे भगवान की रज प्रधान फ्रीकवेन्सी को उत्सर्जित करने की क्षमता बढ़ जाती है। इससे जीवों को वातावरण में दैवी चेतना का अधिक समय तक लाभ मिलता है। गुढी कई झुकी हुई स्थिति मनुष्य केए सक्रिय सुषुम्ना नाडी (चैनल) का प्रतीक है जो भगवान के प्रति खुद के समर्पण का प्रतिक है।
गुढी के लकड़ी छड़ी को मुख्य द्वार के बाहर फर्श पर रखे जाने से छड़ी का निचला भाग जमीन को छूता है। छड़ी से निकलनेवाली सत्व गुणों की तरंगों के कारण फर्श के या भूमी के नीचे से निकलने वाली कष्टदायक तरंगों को ऊपर की ओर प्रवाहीत होने से रोकता है । इस वजह से घर के साथ-साथ घर के आसपास का वातावरण भी गुड़ी के कारण चैतन्य से प्रभावित/ भारित हो जाता है।
गुड़ी पर उल्टाकर लगाए चाँदी, पीतल या तांबे के कलश में ब्रह्मांड की उच्च स्तरीय सात्विक फ्रीकवेन्सी को आकर्षित करने और उत्सर्जित करने की क्षमता अधिक होती है। इस घड़े से निकलने वाली सात्त्विक तरंगें नीम के और आं के पत्तों के रंग के कणों को सक्रिय करती हैं। पत्तियों में इन रंग कणों से रज प्रधान शिव और शक्ति (दिव्य ऊर्जा) फ्रीकवेन्सी का उत्सर्जन होता है। पत्तियों के जरिए सकारात्मक ऊर्जा की लहरें परिवर्तित हो जाती हैं।
फिर इन फ्रीकवेन्सीयों को रेशमी कपड़े द्वारा खींच लिया जाता है और आवश्यकतानुसार नीचे की दिशा में उत्सर्जित किया जाता है। जिससे सारी नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होकर वातावरण सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है।
गुढीपाडवा का पौराणिक महत्व | Significance of Gudi Padwa as per Hindu Mythalogy
गुढीपाडवा एक विजय दिवस के तौर पर मनाया जाता है इस दिन प्रभु श्री राम ने रावण का वध कर वनवास से अयोध्या वापस लौटे थे। इस के लिये उनके स्वागत के लिये आयोध्या के लोगों ने उनके स्वागत के लिये अपने घरों के बाहर गुढी/ विजय ध्वज/ विजय पताका फहराए थे ऐसी मान्यता है।
गुढीपाडवा के संदेश | Gudi Padwa Messages
सुनहरी सुरज की सुनहरी किरने
सुनहरी किरनों का सुनहरा दिवस
सुनहरी दिवस की सुनहरी शुभकामनाएं
गुढी पाडवा की प्यार भारी शुभकामनाएं॥
पिछली यादे गठरी में बाँधकर
करे नये वर्ष का इंतजार
लाये खुशियों की बारात ऐसी
हो गुढी पाडवा से परम्परागत शुरुवात॥
बीते पल अब यादो का हिस्सा हैं
आगे खुशियों का नया फरिश्ता हैं
बाहे फैलाये करो नए साल का दीदार
आया है आया गुड़ी का त्यौहार॥
हैप्पी गुढी पाडवा
शाखों पर सजता नये पत्तो का श्रृंगार
मीठे पकवानों की होती चारो तरफ बहार
मीठी बोली से करते, सब एक दूजे का दीदार
चलो मनाये हिन्दू नव वर्ष इस बार ॥
हैप्पी गुढी पाडवा
FAQ – Frequently asked Questions.
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गुढीपाडवा क्या है?
यह दिन हिंदू मान्यता के मुताबिक, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लोगों का नव वर्ष के शुरु होने का दिन है। इसी दिन से प्रभु श्री राम जन्म के उत्सव की शुरुआत होती है तथा माँ दुर्गा का नवरात्र प्रारंभ होता है। सिन्धी लोग इसे चेटीचंड नाम से मनाते है जो भगवान झूलेलाल का प्रगट होने का दिवस माना जाता है।
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Gudi Padwa 2022 इस साल किस दिन मनाया जाएगा?
इस साल का गुढी पाडवा 2 अप्रैल 2022, शनिवार के दिन आ रहा है। चैत्र मास की प्रतिपदा 1 अप्रैल को सुबह 11:56:15 से शुरु हो रही है, लेकिन यह सूर्योदय के पश्चात होने के कारण सूर्योदय के समय की प्रतिपदा के दिन मतलब, शनिवार 2 अप्रैल को गुढी पाडवा मनाया जाएगा। प्रतिपदा तिथि की समाप्ति 2 अप्रैल को दोपहर 12:00 के बाद होंगी।
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चैत्रांगण रंगोली क्या है?
चैत्रांगण रंगोली एक महाराष्ट्र की परंपारिक रंगोली है जो चैत्र महीने की प्रतिपदा याने गुढी पाडवा से लेकर चैत्र शुक्ल नवमी (राम नवमी) के दिन तक हर रोज आँगन में और भगवान के पुजा स्थल में बनाई जाती है। गोबर से जमीन को साफ कर उस के उपर इसे बनाया जाता है। पहले इसमे 64 शुभ चिन्ह हुआ करते थे, लेकिन आज कुछ चिन्ह कम हुये है। रंगोली के ऊपर एक आम का तोरण बनाया जाता है। उसके नीचे मंदिर बनाते है।
इसमे कुछ पवित्र चिन्ह जैसे स्वस्तिक, राम-सीता या चैत्रा गौरी, हाथी, घोड़ा, नागयुगुल, चील जैसे समृद्धि के प्रतीक, बांसुरी, स्वस्तिक, त्रिशूल, धनुष-बाण, तुलसी वृंदावन, मोर, कमल, कलश, आम, केला, सनाई चौघड़ा, डमरू, कछुआ, गुढी, शंख, पद्म, गदा, चक्र, गोपद्मा, ओम।
इसके साथ सौभाग्य के प्रतिक जैसे हल्दी-कुमकुम का पात्र, कंघी, दीपक, आईना, नारियल और वस्त्र, रुद्राक्ष इत्यादि। सृजन के प्रतिक रूप बच्चे का पालना (झूला), बछड़े के साथ कामधेनु, जैसे बनाते है।